
छू लिया सफलता का शिखर
हमारे समाज में महिला अपने जन्म से लेकर मृत्यु तक एक अहम किरदार निभाती है. वह अपनी सभी भूमिकाओं में निपुणता दर्शाने के बावजूद आज के आधुनिक और विकसित युग में पुरुष से पीछे खड़ी दिखाई देती है. पुरुष प्रधान समाज में महिला की योग्यता को कम आंका जाता है.महिला को अपनी जिंदगी का ख्याल तो रखना ही पड़ता है, साथ ही पूरे परिवार के छोटे से लेकर बड़े सदस्यों का भी ध्यान रखना पड़ता है. वह पूरी जिंदगी बेटी, मां, बहू, पत्नी, सास, दादी, नानी जैसे रिश्तों को पूरी ईमानदारी से निभाती है. कामकाजी महिलाओं को तो घर व बाहर की जिम्मेदारियों के बीच पिसना पड़ता है, वहीं दूसरी ओर ऐसी भी महिलाएं हैं,जिन्होंने विपरीत हालातों का डटकर मुकाबला किया और अपने पैरों पर खड़े होकर समाज व अन्य निराश महिलाओं की प्रेरणा स्रोत बन गईं. महाराष्ट्र के अकोला शहर की निवासी श्रीमती किरण अश्विन श्रीवास्तव एक सफल उद्योजिका और कुशल गृहिणी हैं. उनकी सफलता के पीछे एक लंबा संघर्ष है, जिसमें मुस्कान, खुशी के साथ एक ऐसा दर्द भी छिपा है जिसे सुनकर कुछ पल के लिए महलों में रहने वाली जनकनंदिनी व भगवान श्रीराम की पत्नी माता सीता द्वारा भोगा हुआ वनवास याद आ जाएगा. आंशिक रूप से एक पैर से अपंग किरण के दर्द को सिर्फ ईश्वर ही जानते हैं. मध्यप्रदेश के मंदसौर में जन्मी किरण अपने जीवन के 51 बसंत देख चुकी हैं.उनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई और ग्रेजुएशन करने के बाद उनका विवाह अकोला के डॉक्टर रामप्रसाद श्रीवास्तव के द्वितीय सुपुत्र अश्विन श्रीवास्तव के साथ हुआ. भरापूरा और संपन्न परिवार पाकर किरण की खुशियों का ठिकाना ना था. घर में नौकर चाकर भी थे और पति का भी कॉस्मेटिक का व्यापार था. सब कुछ अच्छा चल रहा था, लेकिन सारी खुशियों पर उस वक्त ग्रहण लग गया, जब उनके ससुर व परिवार के आधार स्तंभ डॉक्टर रामप्रसाद जी का देहावसान हो गया.
लाखों की संपत्ति का उनकी संतानों में बंटवारा हो गया. पति का कारोबार और किरण का ब्यूटी पार्लर भी बंद करने की नौबत आ गई. मजबूरन किरण को अपने पति व सास के साथ अकोला शहर से चार-पांच किलोमीटर दूर ससुराल के खेत में बने छोटे से मकान में भारी मन से शिफ्ट होना पड़ा. दो बेटियां, एक बेटा, पति व सास सहित छह लोगों के परिवार की देखभाल व पालन पोषण की जवाबदारी अब पति अश्विन और किरण के कंधों पर आ गई. हालातों से लड़ते हुए दोनों बच्चियों के हाथ पीले कर दिए. इस बीच ससुर द्वारा खरीदे गए प्लाट्स और मकान का हिस्सा छोड़कर पूरा खेत भी बिक गया. किरण ने हिम्मत नहीं हारी और अपने आंसुओं को दबाकर अपने हौसले को बरकरार रखा.
संघर्ष और अलगाव से सामना
कांटो के बीच खिलने वाले फूल की भांति एक ओर रिश्तों की अहमियत तो दूसरी ओर परिवार के खर्चे. पति भी हमेशा तनाव में रहते पति ने अपना गम व तनाव भुलाने के लिए कुछ व्यसनों की राह पकड़ ली और एक मस्त मौला फकीर की तरह स्वभाव बना लिया. किरण ने ऐसे सभी हालातों का डटकर सामना करने का मन ही मन संकल्प लिया और अपने दिल के जख्मों को दबाकर फैसला किया कि रोने से या किस्मत को दोष देने से कुछ हासिल नहीं होगा, इसलिए खुद अपने पैरों पर खड़े होने का निर्णय लिया.
” चलने की कोशिश तो करो,
यहां दिशाएं बहुत हैं.
रास्ते के कांटों से मत डरो,
आपके साथ दुआएं बहुत हैं. “
बस अपनों की दुआएं और हिम्मत जुटाकर किरण ने एक किराए की छोटी सी दुकान ली और कुछ पास की जमा पूंजी से बच्चों और महिलाओं के परिधानों की बिक्री शुरू की. आंखों में दबे आंसू और दिल में हौसला रखते हुए किरण रोज घर के काम निबटाकर तैयार होती और दो ऑटो बदलकर घर से करीब 10 किलोमीटर दूर अपनी शॉप पर जातीं और वापस शाम 7:00 बजे दुकान बढ़ाकर 10 किलोमीटर वापस सिवनी आतीं और आकर घर की सारी जवाबदारी निभातीं. यह सिलसिला कई माह तक चला.
वक्त ने करवट ली और पति अश्विन श्रीवास्तव ने अपने पुराने टेक्निकल हुनर को एक नये कारोबार में आजमाने का अच्छा निर्णय लिया. उनके पति ने इसके पूर्व गुरुदेव एजेंसी के नाम से जॉब प्लेसमेंट सर्विस अकोला शहर में सबसे पहले शुरू की थी, जिससे सैकड़ों लोगों को रोजगार मिला था, यह किरण जानती थीं. पति के मार्गदर्शन में घर से ही भवन निर्माण में उपयोगी मशीनें, छोटे- बड़े उपकरण, औजार आदि किराए पर देना शुरू किया. किरण ने अपने पति का पूरी शिद्दत से साथ दिया. दोनों की मेहनत रंग लाई और कारोबार चल निकला, अच्छी आय भी होने लगी, लेकिन बीच – बीच में पति-पत्नी में अनबन शुरू रही. कोरोना काल में तो कारोबार डगमगा भी गया. 2-4 बार तो गुस्से में आकर वे मायके भी चली गईं और एक बार तो पति भी घर छोड़कर चले गए. इसके बावजूद दोनों के बीच सारे मनमुटाव दूर हुए और फिर दोनों एक हुए. आज वे अपने पति के कंधे से कंधा मिलाकर अपना कारोबार बखूबी संभाल रही हैं और पारिवारिक जिम्मेदारियों को भी निभा रहीं हैं. आज उनके पास ऐसे सैकड़ों कांट्रेक्टर हैं, जो पहले हेल्पर के रूप में किसी ठेकेदार के पास काम करते थे, पर आज वे खुद ठेकेदार हैं. किरण व उनके पति अश्विन को इस बात की खुशी है की उनका यह कारोबार लोगों को रोजगार दे रहा है और उनके परिवार के सदस्यों को दो वक्त का खाना और सारी जरूरतें पूरी कर खुशियां दे रहा है. किरण का मानना है कि, सारी दुनिया आपके सामने झुके ऐसी दुआ कभी मत मांगना, लेकिन दुनिया की कोई ताकत आपको झुका ना सके, यह दुआ जरूर मांगना. वे अपना अनुभव बताते हुए कहती हैं कि, कुछ घटनाएं हमारे जीवन में सिर्फ परीक्षाएं लेने नहीं आतीं बल्कि हमारे साथ जुड़े हुए लोगों का असली परिचय करवाने के लिए आतीं हैं.अगर खुशियां बांटेंगे तो हज़ार गुना खुशियां आपको मिलेंगी.
किरण अश्विन श्रीवास्तव.
सिवनी, जिला अकोला (महाराष्ट्र )
मोबा.8855901881
आपने जिस हिम्मत से संघर्ष को मात दी और सफलता हासिल की सचमुच प्रेरणादायी है। हमेशा आप पर ईश्वर कृपा बनी रहे-यही कामना है।
प्रेरणादायक व संघर्ष भरा सफर. आने वाला कल और सुखद हो.
Your story is really inspring. I personally known your hardwork about your family and your work. I will pray to god you got all happyness in our life.
Good job
Bhagwan apko aur tarki de