रेणुका बिडकर

दिव्यांगों की मसीहा

गर मजबूत इरादे और बुलंद हौसले दिल में हों तो उस व्यक्ति का रास्ता मौत भी नहीं रोक सकती. लाखों महिलाओं से हटकर रेणुका ऐसी ही एक महिला हैं जिन्होंने न केवल खुद की एक स्वतंत्र पहचान बनाई बल्कि सैकड़ों दिव्यांगों को मदद व रोजगार की राह दिखाकर उनके दिलों में जगह भी बनाई. रेणुका एक महिला ही नहीं अपने आप में एक संस्था भी है. शरीर से दिव्यांग लेकिन इरादों से मजबूत.उनकी कहानी में फूल भी हैं तो कांटे भी. रोमांच है तो दर्द भी और खुशी है तो गम भी. जिस प्रकार जनकनंदिनी सीताजी के नसीब में राजवैभव के साथ वनवास का दु:ख भी लिखा था , वैसी ही रेणुका की कहानी है. वे कहती हैं – मेरी जिंदगी खुली किताब है. कोई छिपा राज नहीं है. कल खुशनुमा गुलशन था , अफसोस वह आज नहीं.    

बैसाखियां बनीं सहारा

 रेणुका जब मात्र एक साल की थीं तब दुर्भाग्य से वे पोलियो  और पैरालिसिस का शिकार हो गईं. जब वे बड़ी हुईं तो जिद्दी रेणुका ने हार नहीं मानी और ना ही अपनी हिम्मत को पस्त होने दिया. माता-पिता के स्नेह, प्यार और उनके आशीर्वाद से रेणुका ने दोनों कंधों को बैसाखी पर रखा और निकल पड़ी अपनी शिक्षा की राह पर. यह बैसाखियां 28/29 की आयु तक नहीं छूटी और उनके ही सहारे उन्होंने धनवटे नेशनल कॉलेज से.बीकॉम की डिग्री हासिल की. इसके बाद सायकोलॉजी में एमएस की शिक्षा पूर्ण की.

समाजसेवा का संकल्प

 गोस्वामी तुलसीदास जी की पंक्तियां हैं -"जाके पांव न फटी बिवाई,सो का जाने पीर पराई."
 अर्थात,जिसने कभी दर्द ही ना सहा हो वह दूसरों की पीड़ा को कैसे जान सकता है. शरीर से दिव्यांग रहने से किस तरह की परेशानियों से गुजरना पड़ता है, यह रेणुका भली-भांति जानती हैं.
 रेणुका के मन में दिव्यांगों, दृष्टिहीनों और मूक - बधिर जैसे लोगों के प्रति ऐसी सहानुभूति जागी कि उन्होंने उनके उद्धार व मदद हेतु समाजसेवा का संकल्प ले लिया. टाइपिंग व कंप्यूटर में दक्ष रेणुका एक बेहतरीन काउंसलर भी हैं. इस काउंसलिंग का उन्होंने अपनी समाजसेवा में उपयोग कर अनेक दिव्यांग, बेरोजगारों, महिलाओं का मार्गदर्शन किया. समाजसेवा को एक मंच मिले, अतः उन्होंने अपनी प्यारी बेटी विरजा के नाम पर 'विरजा अपंग उत्थान संस्था' " 2005 में स्थापित की. यह आज भी अपने अस्तित्व में है. लंबे समय से अस्वस्थ रहने की वजह से वे संस्था के लिए काम नहीं कर रही हैं. शरीर से करीब 88 % डिसेबल रहने के बावजूद रेणुका ने अप्लास्टिक व एनीमिया जैसी बड़ी बीमारी से जूझकर अपनी माता आशा देवी के नाम पर 'आशादीप गृह उद्योग की संकल्पना को साकार किया. आज यह संस्था उनकी व अन्य जरूरतमंद महिलाओं के लिए आशा की किरण बनी हुई है. उनके जीवन का बस एक ही मकसद है कि अंतिम सांस तक वे दिव्यांगों की सेवा व मदद कर सकें और उन्हें आत्मनिर्भर बना सकें. शरीर से अपाहिज पर इरादों से मजबूत रेणुका की जिंदगी  उतार-चढ़ाव और संघर्षों से भरी रही, लेकिन उनके सुन्दर चेहरे पर दिखने वाली छिपी मुस्कान के दर्द को भला उनसे बेहतर और कौन एहसास कर सकता है? रेणुका पर यह पंक्तियां सटीक बैठती हैं...
" ऐ मौत तू फिर कभी आना,
अभी तो जिंदगी जीना बाकी है.
 दर्द और गम के अंधेरे ही देखे हैं.
 खुशियों का उजाला अभी बाकी है."
नाम : रेणुका गुलाबराव बिडकर
जन्मतिथि : 29.5.72
मोबाइल नं. : 9834434781,9823917772
ई- मेल : vausnagpur@gmail.com
पता : प्लॉट नं. एफ-11, प्रतिभा अपार्टमेंट, लक्ष्मीनगर, नागपुर-440022
शैक्षणिक योग्यता :
1.एम.एस. (साइकलॉजी)
2.डिप्लोमा इन कम्प्यूटर
अनुभव :
1.महिला सहकारी बैंक में कम्प्यूटर ऑपरेटर का काम किया.
2.होटल सेंटर पाइंट में टेलीकॉलर के रूप में काम.
3.रिजाइस काउंसलिंग सेंटर में काउंसलर रहीं.
उपलब्धियां
1.विरजा अपंग संस्था व आशादीप गृहउद्योग की स्थापना .
2. मूक – बघिर बच्चों की शादियां करवाई.
3. 40 दिव्यांग बच्चों को कंपनियों में नौकरी दिलवाई.