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Gems of Maharashtra, their inspiring stories – a digital data.

nagpur

प्रशांत वाल्दे

इंजीनियर से बने बॉडी डबल

कन्फ्यूज हो गए ना! तस्वीर में किंगखान नहीं बल्कि उनके डुप्लीकेट हैँ। आज हम बात कर रहे हैं शाहरूख खान के बॉडी डबल प्रशांत वाल्दे की। नागपुर से इंजीनिरिंग की डिग्री ली।शहर के एक डांस इंस्टीटयूट में कोरियोग्राफर का काम करने के साथ इवेंट भी आर्गेनाइज करने लगे।इस दौरान जब भी मंच पर जाते लोग शाहरूख…शाहरूख करके आवाज देते। एक दिन अचानक पत्नी से बोले मैं किस्मत आजमाने मुंबई जाना चाहता हूं। पत्नी ने 1200 रु. दिए और पहुंच गए मुंबई। यहां शुरू हुआ संघर्ष।2007 की बात है फिल्मों में बतौर कोरियोग्राफर काम शुरू किया। किस्मत और मेहनत रंग लाई और फिल्म ‘ओम शांति ओम’के सेट पर शाहरुख खान से पहली मुलाकात हुई। बस..तब से आज तक उनके साथ हैं। प्रशांत ने कहा कि शाहरूख सर  मुझे बहुत पसंद करते हैं और बेटा कहकर बुलाते हैं।कहते हैं बड़े पेड़ के नीचे छोटा पेड़ कभी फलता-फूलता नहीं। पर ये भी सच है कि हिम्मत करने वालों की कभी हार नहीं होती। उस पर मेहनत और लगन का जज्बा हो तो कहना ही क्या। यही वजह है कि आज प्रशांत अपने टेलेंट के दम पर अपनी पहली फ़िल्म ‘प्रेमातुर’ के साथ बॉलीवुड में छा जाने के लिए तैयार हैं।

 ‘फैन’ से पूरा हुआ ड्रीम

प्रशांत ने बताया कि मैं पिछले 15  सालों से शाहरूख भाई के साथ काम कर रहा हूं। मैंने उनके साथ  ओम शांति ओम , डॉन , चेन्नई एक्सप्रेस , डीयर जिंदगी , रईस  , फैन जैसी कई फिल्मों बॉडी डबल का काम किया है। परंतु फिल्म ‘फैन’ में पहली बार मेरे काम को नोटिस किया गया और मेरे नाम को क्रेडिट दिया गया। प्रशांत ने बताया कि ‘फैन’ के कई सीन्स में वे साफ दिखाई दे रहे हैं

लोग हो जाते हैं कन्फ्यूज

प्रशांत बताते हैं कि कई बार ऐसा मौका आता है जब भीड़ को हटाना हो या भीड़ वाली जगह में जाना हो वहां प्रशांत पहुंच जाते हैं और लोग उन्हें शाहरूख खान समझ लेते हैं।कई बार ऐसा होता है कि शाहरूख खान के बंगले के सामने फैनस की भीड़ लग जाती है, वे अनकंट्रोल्ड होने लगते हैं , तब उन्हें प्रशांत ही कंट्रोल करते हैं।दूर से देखकर लोग उन्हें शाहरूख समझ लेते हैं और उनकी बात मान लेते हैं।

स्टंटस मेरे लिए चैलेंज

प्रशांत ने कहा कि शाहरूख खान बहुत व्यस्त और महंगे एक्टर हैं। उनके पास समय नहीं रहता। इसलिए जब किसी लॉन्ग शॉट की जरूरत होती है, जिसमें चेहरा दिखाना जरूरी न हो, तब शाहरूख की जगह उनसे काम लिया जाता है। प्रशांत बताते हैं कि जो खतरनाक स्टंट करने से शाहरूख मना कर देते हैं उसे मैं हर कीमत पर करता हूं, चाहे वो कितना भी डेंजर क्यों न हो। वो मेरे लिए एक चुनौती होता है। कई बार एडिट टेबल पर फँसे कई दृश्यों की रीशूट के लिए भी प्रशांत की मदद ली जाती है।

किंगखान के  फैन हैं प्रशांत

प्रशांत खुद शाहरूख के जबरा फैन हैं। इसलिए उन्होंने  अपनी पहली फिल्म को किंग खान को डेडिकेट किया है।  प्रशांत ने बताया कि मैं शाहरुख़ भाई का जबर्दस्त फैन हूं। इसलिए अपनी पहली फिल्म ‘प्रेमातुर’ किंग खान को समर्पित करते हुए फिल्म में उनके बहुत  सारे पॉपुलर मूव्स और मूवमेंट्स रखे हैं।

रेणुका बिडकर

दिव्यांगों की मसीहा

गर मजबूत इरादे और बुलंद हौसले दिल में हों तो उस व्यक्ति का रास्ता मौत भी नहीं रोक सकती. लाखों महिलाओं से हटकर रेणुका ऐसी ही एक महिला हैं जिन्होंने न केवल खुद की एक स्वतंत्र पहचान बनाई बल्कि सैकड़ों दिव्यांगों को मदद व रोजगार की राह दिखाकर उनके दिलों में जगह भी बनाई. रेणुका एक महिला ही नहीं अपने आप में एक संस्था भी है. शरीर से दिव्यांग लेकिन इरादों से मजबूत.उनकी कहानी में फूल भी हैं तो कांटे भी. रोमांच है तो दर्द भी और खुशी है तो गम भी. जिस प्रकार जनकनंदिनी सीताजी के नसीब में राजवैभव के साथ वनवास का दु:ख भी लिखा था , वैसी ही रेणुका की कहानी है. वे कहती हैं – मेरी जिंदगी खुली किताब है. कोई छिपा राज नहीं है. कल खुशनुमा गुलशन था , अफसोस वह आज नहीं.  

बैसाखियां बनीं सहारा

रेणुका जब मात्र एक साल की थीं तब दुर्भाग्य से वे पोलियो  और पैरालिसिस का शिकार हो गईं. जब वे बड़ी हुईं तो जिद्दी रेणुका ने हार नहीं मानी और ना ही अपनी हिम्मत को पस्त होने दिया. माता-पिता के स्नेह, प्यार और उनके आशीर्वाद से रेणुका ने दोनों कंधों को बैसाखी पर रखा और निकल पड़ी अपनी शिक्षा की राह पर. यह बैसाखियां 28/29 की आयु तक नहीं छूटी और उनके ही सहारे उन्होंने धनवटे नेशनल कॉलेज से.बीकॉम की डिग्री हासिल की. इसके बाद सायकोलॉजी में एमएस की शिक्षा पूर्ण की.

समाज सेवा का संकल्प

गोस्वामी तुलसीदास जी की पंक्तियां हैं -“जाके पांव न फटी बिवाई,सो का जाने पीर पराई.” अर्थात,जिसने कभी दर्द ही ना सहा हो वह दूसरों की पीड़ा को कैसे जान सकता है. शरीर से दिव्यांग रहने से किस तरह की परेशानियों से गुजरना पड़ता है, यह रेणुका भली-भांति जानती हैं.

 रेणुका के मन में दिव्यांगों, दृष्टिहीनों और मूक – बधिर जैसे लोगों के प्रति ऐसी सहानुभूति जागी कि उन्होंने उनके उद्धार व मदद हेतु समाजसेवा का संकल्प ले लिया. टाइपिंग व कंप्यूटर में दक्ष रेणुका एक बेहतरीन काउंसलर भी हैं. इस काउंसलिंग का उन्होंने अपनी समाजसेवा में उपयोग कर अनेक दिव्यांग, बेरोजगारों, महिलाओं का मार्गदर्शन किया. समाजसेवा को एक मंच मिले, अतः उन्होंने अपनी प्यारी बेटी विरजा के नाम पर ‘विरजा अपंग उत्थान संस्था’ ” 2005 में स्थापित की. यह आज भी अपने अस्तित्व में है. लंबे समय से अस्वस्थ रहने की वजह से वे संस्था के लिए काम नहीं कर रही हैं. शरीर से करीब 88 % डिसेबल रहने के बावजूद रेणुका ने अप्लास्टिक व एनीमिया जैसी बड़ी बीमारी से जूझकर अपनी माता आशा देवी के नाम पर ‘आशादीप गृह उद्योग की संकल्पना को साकार किया. आज यह संस्था उनकी व अन्य जरूरतमंद महिलाओं के लिए आशा की किरण बनी हुई है. उनके जीवन का बस एक ही मकसद है कि अंतिम सांस तक वे दिव्यांगों की सेवा व मदद कर सकें और उन्हें आत्मनिर्भर बना सकें. शरीर से अपाहिज पर इरादों से मजबूत रेणुका की जिंदगी  उतार-चढ़ाव और संघर्षों से भरी रही, लेकिन उनके सुन्दर चेहरे पर दिखने वाली छिपी मुस्कान के दर्द को भला उनसे बेहतर और कौन एहसास कर सकता है? रेणुका पर यह पंक्तियां सटीक बैठती हैं…

” ऐ मौत तू फिर कभी आना,

अभी तो जिंदगी जीना बाकी है.

 दर्द और गम के अंधेरे ही देखे हैं.

 खुशियों का उजाला अभी बाकी है.

जीवन परिचय
नाम : रेणुका गुलाबराव बिडकर
जन्मतिथि : 29.5.72
मोबाइल नं. : 9834434781,9823917772
ई- मेल : vausnagpur@gmail.com
पता : प्लॉट नं. एफ-11, प्रतिभा अपार्टमेंट, लक्ष्मीनगर, नागपुर-440022
शैक्षणिक योग्यता :
1.एम.एस. (साइकलॉजी)
2.डिप्लोमा इन कम्प्यूटर
अनुभव :
1.महिला सहकारी बैंक में कम्प्यूटर ऑपरेटर का काम किया.
2.होटल सेंटर पाइंट में टेलीकॉलर के रूप में काम
3.रिजाइस काउंसलिंग सेंटर में काउंसलर रहीं.
उपलब्धियां
1.विरजा अपंग संस्था व आशादीप गृहउद्योग की स्थापना .
2. मूक – बघिर बच्चों की शादियां करवाई.
3. 40 दिव्यांग बच्चों को कंपनियों में नौकरी दिलवाई.

रेणुका बिडकर

दिव्यांगों की मसीहा

गर मजबूत इरादे और बुलंद हौसले दिल में हों तो उस व्यक्ति का रास्ता मौत भी नहीं रोक सकती. लाखों महिलाओं से हटकर रेणुका ऐसी ही एक महिला हैं जिन्होंने न केवल खुद की एक स्वतंत्र पहचान बनाई बल्कि सैकड़ों दिव्यांगों को मदद व रोजगार की राह दिखाकर उनके दिलों में जगह भी बनाई. रेणुका एक महिला ही नहीं अपने आप में एक संस्था भी है. शरीर से दिव्यांग लेकिन इरादों से मजबूत.उनकी कहानी में फूल भी हैं तो कांटे भी. रोमांच है तो दर्द भी और खुशी है तो गम भी. जिस प्रकार जनकनंदिनी सीताजी के नसीब में राजवैभव के साथ वनवास का दु:ख भी लिखा था , वैसी ही रेणुका की कहानी है. वे कहती हैं – मेरी जिंदगी खुली किताब है. कोई छिपा राज नहीं है. कल खुशनुमा गुलशन था , अफसोस वह आज नहीं.    

बैसाखियां बनीं सहारा

 रेणुका जब मात्र एक साल की थीं तब दुर्भाग्य से वे पोलियो  और पैरालिसिस का शिकार हो गईं. जब वे बड़ी हुईं तो जिद्दी रेणुका ने हार नहीं मानी और ना ही अपनी हिम्मत को पस्त होने दिया. माता-पिता के स्नेह, प्यार और उनके आशीर्वाद से रेणुका ने दोनों कंधों को बैसाखी पर रखा और निकल पड़ी अपनी शिक्षा की राह पर. यह बैसाखियां 28/29 की आयु तक नहीं छूटी और उनके ही सहारे उन्होंने धनवटे नेशनल कॉलेज से.बीकॉम की डिग्री हासिल की. इसके बाद सायकोलॉजी में एमएस की शिक्षा पूर्ण की.

समाजसेवा का संकल्प

 गोस्वामी तुलसीदास जी की पंक्तियां हैं -"जाके पांव न फटी बिवाई,सो का जाने पीर पराई."
 अर्थात,जिसने कभी दर्द ही ना सहा हो वह दूसरों की पीड़ा को कैसे जान सकता है. शरीर से दिव्यांग रहने से किस तरह की परेशानियों से गुजरना पड़ता है, यह रेणुका भली-भांति जानती हैं.
 रेणुका के मन में दिव्यांगों, दृष्टिहीनों और मूक - बधिर जैसे लोगों के प्रति ऐसी सहानुभूति जागी कि उन्होंने उनके उद्धार व मदद हेतु समाजसेवा का संकल्प ले लिया. टाइपिंग व कंप्यूटर में दक्ष रेणुका एक बेहतरीन काउंसलर भी हैं. इस काउंसलिंग का उन्होंने अपनी समाजसेवा में उपयोग कर अनेक दिव्यांग, बेरोजगारों, महिलाओं का मार्गदर्शन किया. समाजसेवा को एक मंच मिले, अतः उन्होंने अपनी प्यारी बेटी विरजा के नाम पर 'विरजा अपंग उत्थान संस्था' " 2005 में स्थापित की. यह आज भी अपने अस्तित्व में है. लंबे समय से अस्वस्थ रहने की वजह से वे संस्था के लिए काम नहीं कर रही हैं. शरीर से करीब 88 % डिसेबल रहने के बावजूद रेणुका ने अप्लास्टिक व एनीमिया जैसी बड़ी बीमारी से जूझकर अपनी माता आशा देवी के नाम पर 'आशादीप गृह उद्योग की संकल्पना को साकार किया. आज यह संस्था उनकी व अन्य जरूरतमंद महिलाओं के लिए आशा की किरण बनी हुई है. उनके जीवन का बस एक ही मकसद है कि अंतिम सांस तक वे दिव्यांगों की सेवा व मदद कर सकें और उन्हें आत्मनिर्भर बना सकें. शरीर से अपाहिज पर इरादों से मजबूत रेणुका की जिंदगी  उतार-चढ़ाव और संघर्षों से भरी रही, लेकिन उनके सुन्दर चेहरे पर दिखने वाली छिपी मुस्कान के दर्द को भला उनसे बेहतर और कौन एहसास कर सकता है? रेणुका पर यह पंक्तियां सटीक बैठती हैं...
" ऐ मौत तू फिर कभी आना,
अभी तो जिंदगी जीना बाकी है.
 दर्द और गम के अंधेरे ही देखे हैं.
 खुशियों का उजाला अभी बाकी है."
नाम : रेणुका गुलाबराव बिडकर
जन्मतिथि : 29.5.72
मोबाइल नं. : 9834434781,9823917772
ई- मेल : vausnagpur@gmail.com
पता : प्लॉट नं. एफ-11, प्रतिभा अपार्टमेंट, लक्ष्मीनगर, नागपुर-440022
शैक्षणिक योग्यता :
1.एम.एस. (साइकलॉजी)
2.डिप्लोमा इन कम्प्यूटर
अनुभव :
1.महिला सहकारी बैंक में कम्प्यूटर ऑपरेटर का काम किया.
2.होटल सेंटर पाइंट में टेलीकॉलर के रूप में काम.
3.रिजाइस काउंसलिंग सेंटर में काउंसलर रहीं.
उपलब्धियां
1.विरजा अपंग संस्था व आशादीप गृहउद्योग की स्थापना .
2. मूक – बघिर बच्चों की शादियां करवाई.
3. 40 दिव्यांग बच्चों को कंपनियों में नौकरी दिलवाई.